
बुधवार को जब दलाई लामा ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि उनकी मृत्यु के बाद भी धर्मगुरु चुनने की परंपरा जारी रहेगी, तो चीन की तरफ से तुरंत एक प्रतिक्रिया आई — “ठीक है, लेकिन पर्ची से ही चुनेंगे!”
जी हाँ, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी की पहचान केवल ‘लॉट सिस्टम’ यानी पर्ची प्रणाली से की जा सकती है। वैसे भी, परमात्मा का अवतार ढूंढने के लिए लकी ड्रा से बेहतर क्या तरीका होगा?
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पारंपरिक पद्धति या चीन का ‘चांस कार्ड’?
चीन का दावा है कि यह प्रक्रिया 1792 से चली आ रही है, जिसमें कुछ नामों की पर्चियां सोने के कलश में डाल दी जाती हैं, और फिर ईश्वर का निर्णय उस पर्ची से निकल आता है।
चीन ने याद दिलाया कि तीन दलाई लामा इसी सिस्टम से चुने गए थे—हालाँकि यह जरूर बताया गया कि मौजूदा दलाई लामा इस पद्धति से नहीं चुने गए थे।
(संयोग? हमें नहीं लगता!)
चीन बोले – ये हमारी ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ है
चीनी विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि यह प्रक्रिया तिब्बती बौद्ध धर्म का एक विशिष्ट रूप है, और चीन इसे अपने ‘धार्मिक विश्वासों की स्वतंत्रता’ की नीति के तहत मान्यता देता है।
जो सुनने में उतना ही लोकतांत्रिक लगता है, जितना वोटिंग के दिन वोटिंग मशीन का WiFi से कनेक्ट होना।
पेन्पा शेरिंग का चीन पर पलटवार
उधर, सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन के नेता पेन्पा शेरिंग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि चीन दलाई लामा उत्तराधिकारी मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है।
उन्होंने धर्मशाला में प्रेस को बताया, हमारी परंपरा स्पष्ट है और हम उसी का पालन करेंगे। चीन के राजनीतिक मकसदों की हम निंदा करते हैं।
उन्होंने सीधे आरोप लगाया कि चीन तिब्बती संस्कृति, भाषा और धर्म को मिटाने की कोशिश कर रहा है। यानी सब कुछ मिटाओ, फिर कहो – “अब तुम जो चाहो बन जाओ!”
धर्म, डेमोक्रेसी और दांव
इस पूरे विवाद में एक तरफ है तिब्बती धार्मिक परंपरा, दूसरी तरफ चीन की राजनीतिक मंशा, और बीच में फंसी है वो पर्ची… जो शायद भविष्य के दलाई लामा का भाग्य तय करेगी।
तो अब अगली बार जब आप किसी जॉब इंटरव्यू में पर्ची डालें, तो याद रखिए—दलाई लामा भी कभी इसी सिस्टम से चुने जा सकते हैं।
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